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Sunday, July 18, 2021

वीर स्वंत्रता सेनानी गुंडाधुर के नाम से ही बना है "गुंडा" शब्द।।


कबीर ने "गुंडा " शब्द का प्रयोग किया ?

नहीं। 

सूरदास ने " गुंडा " शब्द का प्रयोग किया ?

 नहीं। 

तुलसी ने " गुंडा " शब्द का प्रयोग किया ?

नहीं।

जायसी , बिहारी , मतिराम , चिंतामणि किसी ने " गुंडा " शब्द का प्रयोग किया ?

 नहीं। 

छोड़िए, आधुनिक काल में भारतेंदु ने " गुंडा " शब्द का प्रयोग किया ?

 नहीं।

बदमाश के अर्थ में " गुंडा " शब्द था ही नहीं तो वे लोग करते कैसे?

20 वीं शताब्दी से पहले दुनिया में किसी ने भी बदमाश के अर्थ में " गुंडा " शब्द का प्रयोग नहीं किया।

 

हिंदी में " गुंडा " शब्द अंग्रेजों की फाइल से आया है, तब जब 20 वीं शताब्दी के पहले दशक में बस्तर के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी वीर गुंडा को अंग्रेजों ने गुंडा ( बदमाश ) मान लिया। 

भारतीयों की नजर में वीर गुंडा स्वतंत्रता सेनानी थे, मगर अंग्रेजों की नजर में बिगड़ैल, बदमाश। 

अंग्रेजों ने गुंडा एक्ट बनाया सो तो ठीक है, मगर आजाद भारत में गुंडा एक्ट क्यों ? जिसने देश को आजाद कराया ,वहीं गुंडा !

 

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गूंडाधूर आजादी की जंग में छत्तीसगढ का ऐसा जिसके नाम सुनते ही अंग्रेजों की रूह कांप जाती थी। बस्तर की पावन भूमी पर जन्म लेने वाले क्रांतिकारी गूंडाधूर ने आदिवासियों को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया। इस क्रंतिकारी ने अंग्रेजों के नाक में इतना दम कर रखा था कि वे बस्तर तो क्या देश छोडऩे को मजबूर हो गए थे लकिन वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था।

गूंडाधूर बस्तर के धुरवा नजजाति के थे उन्होंने संग्राम की शुरूआत 2 फरवरी 1910 को पूसपाल बाजार की लूअ से की थी। गुडाधूर बस्तर और आदिवासी जनजाति को अंग्रेजों से मुक्त कराना चाहते थे इसीलिए उन्होंने विद्रोह का नया तरिका निकाला और घुम-घुत कर पूरे बस्तर में विद्रोह का आगाज किया। बस्तर की जनता अंग्रेजों के अत्याचार से पहले ही परेशसन थी कि उन्नीसवर सदी के अंत तक सेठ, सामंत साहूकारों ने आदिवासियों का शोषण शुरू कर दिया। भारी लगान और शोषण से परेशान आदिवासियों ने इनके खिलाफ भी विद्रोह का आगाज कर दिया।

गुंडाधूर ने इस विद्रोह का कुशल संचालन मूरत सिंह बख्शी, बाला प्रसाद नाजिर, वीर सिंह बंदान और लाल कालन्द्री सिंह के सहयोग से किया। विद्रोह का संदेश गांव-गांव तक पहुंचाने के लिये लाल मिर्ची, मिट्टी, धनुष बाण और आम की डंगाल का प्रयोग किया। इस अभियान को बस्तर की जनता ने डारा मिरी का नाम दिया। गुंडाधूर ने इस विद्रोह में सबसे पहले अंगे्रजों के संचार तंत्र को नष्ट किया इस विद्रोह को लेकर बस्तर की सभी आदिवासी जातियों में अभूतपूर्व उत्साह था। उन सभी का लक्ष्य एक ही था बस्तर बस्तरवासियों का है और इसे हम लेकर रहेंगे।

गुंडाधूर ने ब्रिटिश सत्ता और अधिकारियों से उनके आतंक का इस तरह से बदला लिया कि उनका नाम बस्तर में आतंक का पर्याय बन गया और अंग्रेजी सत्ता उनके नाम से ही खौफ खाने लगी। अंग्रजों में मन में गूंडाधूर का इतन भय बैठ चुका था कि रायपुर से मिस्टर गेयर और डीब्रेट को दमन के लिए बस्तर जाना पड़ा। जहां कांकेर के राजा ने उनका सहयोग किया। अंग्रेजों ने जगह जगह गांव जलाये, लोगों को फांसी पर लटकाया, महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार किये। मई 1910 तक अंग्रेजों ने आदिवासियों के विद्रोह पूर्णत: दबा दिया जिसमें कई आदिवासियों ने हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुती दे दी।

गुंडाधूर ने एक बार फिर अपनी सेना संगठित की। तीर कमान, कुल्हाड़ी, टंगिया से सुसज्जित होकर जगदलपुर विजय अभियान पर निकले। यहां अलनार गांव में उनका अंग्रेजों से अंतिम मुकाबला हुआ। सोनू मांझी ने आदिवासियों को मदिरा पिलाकर गूंडाधूर के साथ धोखा किया और अंग्रेजों की सेना ने गूंडाधूर को चारो तरफ से घेर लिया इसके बाद भी गूंडाधूर अंग्रेजों का चकमा देकर भाग निकले अंगे्रजी सेना ने गूंडाधूर को पकडऩे के लिए बस्तर का चप्पा चप्पा छाना, हर संभव कोशिश की लेकिन वे अंत तक पकड़े नहीं गये। भले ही आजादी की लड़ाई में इस क्रंतिकारी का योगदान इतिहास पन्नों पर सिमटकर रह गया लेकिन जब भी बात आजादी की होगी तो गुडाधूर का नाम सदैव गर्व से लिया जायेगा।

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