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Showing posts from July, 2021

Jharkhand Panchayati Raj

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झारखंड पंचायती राज हैंडबुक पंचायत की पद्धति अपने देश के लिए कोई नई नहीं है। आदिवासी हों या मूलवासी, सभी में हजारों वर्षों से पंचायत की अपनी एक ठोस परंपरा रही है। सुख-दुःख से लेकर लड़ाई-झगड़ों के निपटारे, शादी-विवाह और जन्म-मृत्यु में पंचायत और सगे-संबंधी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। पंचायत समुदाय द्वारा तय मर्यादा का वहन और संचालन करती है, रीति-रिवाज एवं परंपराओं का सम्मान करती है। आज भी यह कई समुदायों में जिंदा है। निश्‍च‌ित तौर पर जहाँ पंचायत जिंदा है, वह समाज आज भी स्वशासी और स्वावलंबी है। जिन समुदायों में यह पद्धति समाप्‍तप्राय है, वे परावलंबी बन परमुखापेक्षी बन गए हैं। विकास की मृगतृष्णा उन्हें अपनी जमीन से उजाड़ देती है; कहीं-कहीं तो भिखारी तक बना देती है। ‘अबुआ आतो रे, अबुआ राज’ महज कल्पना नहीं बल्कि एक सच्चाई है। इसे समझकर ही आगे सकारात्मक प्रयोग हो सकते हैं। इस अर्थ में यह हैंडबुक महज नियमों का पुलिंदा नहीं है, बल्कि इसमें नियमों के साथ आदिवासी समाज के उन परंपरागत नियमों को शामिल किया गया है, जिनके बल पर आदिवासी व मूलवासी समाज हिल-मिलकर आगे बढ़ रहे हैं। इस हैंडबुक की सा...

JHARKHAND KE ADIVASI : PAHCHAN KA SANKAT

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यह सच है कि आज के युवा अपनी भाषा-संस्कृति के बारे मेंगहरी समझ नहीं रखते हैं। दुनिया की चकाचौंध में वे खोते जा रहे हैं। अपने पर्व-त्योहार और अपनी भाषा के बारे में वे अधिक जानते नहीं हैं। इस पुस्तक में कई ऐसे लेख हैं; जो झारखंड की भाषा-संस्कृति से जुड़े हैं। इसमें सोहराय; सरहुल और अन्य त्योहारों की महत्ता बताने का प्रयास किया गया है। प्रभाकर तिर्की ने एक लेख और आँकड़ों के माध्यम से यह बताना चाहा है कि कैसे झारखंड में आदिवासी कम होते जा रहे हैं। महादेव टोप्पो ने आदिवासी साहित्य; दशा और दिशा के जरिए आदिवासी भाषाओं को समृद्ध करने का रास्ता बताया है। एक दुर्लभ लेख ‘आदिवासियत और मैं’ है; जिसे मरांग गोमके जयपाल सिंह ने लिखा है। इसके अलावा पुष्पा टेटे; रोज केरकट्टा; हरिराम मीणा; जेवियर डायस; पी.एन.एस. सुरीन आदि के लेख हैं; जिनमें दुर्लभ जानकारियाँ हैं; जो आसानी से उपलब्ध नहीं होतीं। ऐसे लेखों को संकलित कर पुस्तक का आकार देने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि ये लेख आगाह करनेवाले हैं; हमें जगानेवाले हैं। ये महत्त्वपूर्ण लेख हैं; जिनका उपयोग शोधछात्र कर सकते हैं; नीतियाँ बनाने में सरकार कर सकती है। स...

Bureaucrats Aur Jharkhand

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यह पुस्तक अनुभवी और जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके अधिकारियों द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन है। इन लेखों में अधिकांश लेख झारखंड या देश के आई.ए.एस.-आई.पी.एस. अफसरों द्वारा लिखे गए हैं। ये सारे लेख ‘प्रभात खबर’ में समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं। कोई भी राज्य तब तरक्की करता है; जब सरकार और ब्यूरोक्रेट्स अपना-अपना काम ढंग से करते हैं; दोनों में तालमेल रहता है। सरकारें नीतियाँ बनाती हैं; निर्णय लेती हैं और ब्यूरोक्रेट्स उन्हें लागू करते हैं। कई बार सत्ता-ब्यूरोक्रेट्स में तालमेल गड़बड़ाता है। आरोप-प्रत्यारोप में समय निकल जाता है। जब झारखंड के नवनिर्माण की बात आई; तो राजनीतिज्ञों (यहाँ सरकार) ने अपने तरीके से काम किया। अफसरों की अपनी सोच थी कि कैसे राज्य विकसित हो सकता है। ‘प्रभात खबर’ ने प्रयास किया था कि झारखंड कैसे विकसित होगा; विकास का मॉडल क्या होगा; इस पर अधिकारी भी खुलकर बोलें और लिखें भी। तब आई.ए.एस.-आई.पी.एस. अफसरों ने हिम्मत कर अपनी बात लेखों के माध्यम से रखी थी। लेख लिखनेवालों में ब्यूरोक्रेट रह चुके तब के राज्यपाल प्रभात कुमार और वेद मारवाह भी थे। ये महत्त्वपूर्ण दस्तावेज हैं; जो झा...

JHARKHAND ADIVASI VIKAS KA SACH

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ऐसा कहा जाता रहा है कि संविधान की पाँचवीं अनुसूची आदिवासियों के लिए उनका धर्मग्रंथ है; जिसके प्रति उनकी आस्था है; उनकी श्रद्धा है। यह धर्मग्रंथ उनके जीने की आशा है; उनका स्वर्णिम भविष्य है। लेकिन संविधान रूपी इस धर्मग्रंथ के प्रति अब आस्था टूट रही है और उनकी श्रद्धा कम हो रही है। अब यह आस्था बनाए रखने का धर्मग्रंथ नहीं; बल्कि आदिवासी इसे कोरे कागज की तरह देख रहे हैं। इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत विश्लेषण पाँचवीं अनुसूची के संवैधानिक प्रावधानों के अलावा आदिवासी समाज के उन तमाम पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश है; जिसका सीधा संबंध संविधान की पाँचवीं अनुसूची से है। वर्तमान संदर्भ में यह विश्लेषण पाँचवीं अनुसूची के उल्लंघन के कारण उत्पन्न होने वाली उन प्रतिकूल परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश है; जिनके कारण आदिवासी समाज का विकास बाधित होने की आशंका को बल मिल रहा है। वस्तुतः झारखंड का नवनिर्माण का मकसद हमारी आनेवाली पीढ़ी के भविष्य का निर्माण। इस पुस्तक को प्रासंगिक बनाने के लिए ऐतिहासिक संदर्भों में विद्यमान तथ्यों को भरसक जुटाने की कोशिश करते हुए; झारखंड नवनिर्माण का मार्ग कैसे ...

Jharkhand ke Sahityakar Aur Naye Sakshatkar

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झारखंड के रचनाकार शुरू से ही शिक्षा; साहित्य; समाज और राजनीति में उपेक्षित रहे हैं। मुंडारी के प्रथम लेखक-उपन्यासकार मेनस ओड़ेया हों; हिंदी की पहली आदिवासी कवयित्री और संपादक सुशीला सामद हों या नागपुरी के धनीराम बक्शी; ऐसे सभी झारखंडी-लेखकों और साहित्य साधकों का जीवन और कृतित्व अलिखित दुनिया के अँधेरे में समाया हुआ है। रघुनाथ मुर्मू; प्यारा केरकेट्टा; लको बोदरा पर हिंदी में एकाध पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं; लेकिन फादर पीटर शांति नवरंगी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जिस तरह का महत्त्वपूर्ण शोध और उसका प्रकाशन हुआ है; अन्य झारखंडी लेखकों-साहित्यकारों पर नहीं हो सका है। झारखंड के राँची; धनबाद और जमशेदपुर से विपुल मात्रा में पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती रही हैं; परंतु इन पत्र-पत्रिकाओं में झारखंडी रचनाकारों के साक्षात्कारों के लिए जगह नहीं होती। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद भी इस स्थिति में कोई मूलभूत बदलाव नहीं आया है। इस पुस्तक में उन पुरखा साहित्यकारों के परिचय व साक्षात्कारों को संकलित किया गया है; जिन्होंने हिंदी और अपनी आदिवासी एवं देशज मातृभाषाओं में झारखंडी साहित्य को विकसित और समृद्ध ...

Jharkhand Mein Vidroh Ka Itihas (Hindi Edition)

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झारखंड संघर्ष की धरती रही है। यहाँ के आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई लड़ी थी। ‘ झारखंड में विद्रोह का इतिहास ’ नामक इस पुस्तक में 1767 से 1914 तक हुए संघर्ष का जिक्र है। धालभूम विद्रोह के संघर्ष से कहानी आरंभ होती है। उसके बाद चुआड़ विद्रोह , तिलका माझी का संषर्घ , कोल विद्रोह , भूमिज विद्रोह , संथाल विद्रोह , बिरसा मुंडा का उलगुलान आदि सभी संघर्ष - विद्रोहों के बारे में इस पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है। संथाल विद्रोह के तुरंत बाद ही , यानी 1857 में झारखंड क्षेत्र में भी सिपाही विद्रोह हुआ। झारखंड के वीरों ने इस विद्रोह में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लिया। राजा अर्जुन सिंह , नीलांबर - पीतांबर , ठाकुर विश्वनाथ शाही , पांडेय गणपत राय , उमरांव सिंह टिकैत , शेख भिखारी आदि उस विद्रोह के नायक थे। इस पुस्तक में उनके संघर्ष के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। पुस्तक में चानकु महतो , तेलंगा खडि़या , सरदारी लड़ाई , टाना भगतो के आंदोल...

Percentage of population in Santhal in Jharkhand

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Jharkhand   DATA HIGHLIGHTS: THE SCHEDULED TRIBES Census of India 2001 1.The Scheduled Tribe (ST) population of Jharkhand State is as per 2001 census 7,087,068 constituting 26.3 per cent of the total population (26,945,829) of the State. Among all Sates and UTs, Jharkhand holds 6 th and 10 th ranks terms of the ST population and the percentage share of the ST population to the total population of the State respectively. The growth of the ST population has been 17.3 per cent which is lower by  6 per cent if compared with the growth of the State’s total population (23.3 per cent) during 1991-2001. The state has a total of thirty (30) Scheduled Tribes and all of them have been enumerated at 2001 census   2. The Scheduled Tribes are primarily rural as 91.7per cent of them reside in villages. District wise   distribution of ST population shows that Gumla district has the highest proportion of STs (68.4per   cent). The STs constitute more than half ...